“हिन्दू-राष्ट्र चाहते है?”
“हिन्दू-राष्ट्र चाहते है?”
रिपोर्ट : प्रदीप शुक्ल, ब्यूरो चीफ – युटीवी खबर
× क्या है हिन्दू राष्ट्र?
-> श्रुति-स्मृति द्वारा नियुक्त सत्पात्रो से शास्त्रीय मर्यादानुरूप शाषित, परिपालित, संपोषित, संवर्द्धित राज्य।
चहुओर देखें। इस घोरतम तमस और अधर्म मे क्या लगता है?
यही की– हिन्दू-राष्ट्र बिना संहार के कदापि स्थापित नही हो सकता। पृथिवी का भार हरण आवश्यक है।
× संहार किसका होगा?
म्लेच्छों का संहार होगा। विधर्मियो का होगा। अनार्य, देवनिंदक, शास्त्रनिंदक, गुरुनिन्दक, संतनिन्दक, वर्णाश्रमादिधर्मनिंदको का होगा।
अब क्षणभर स्वयं का परीक्षण करें। क्या आपमे हिन्दू राष्ट्र के वेग को सहने का सामर्थ्य है? पहले माहात्म्य ज्ञान, तद् इच्छा फिर प्रवृत्ति होती है। इच्छा लाने के पूर्व भीतर देखना चाहिए कि अमुक वस्तु के लिए मेरी क्या योग्यता है।
भीतर हृदय में यमदेव विराजमान है। उनसे प्रश्न करे कि यदि आज ही हिन्दू राष्ट्र घोषित हो जाए तो क्या मैं कल नही मारा जाऊंगा? क्या मैंने विकर्म में मन लगाकर शास्त्रो का अपमान नही किया? क्या मेरी जीविका वर्णधर्म-आश्रमधर्म अनरूप है? क्या मैंने नित्यकर्मों का लोप नही किया? क्या मैं प्रतिदिन अन्यो के भाग का धन, जन, भोग, स्त्री का हरण करने वाला कण्टक नही हूँ? क्या मेरी वाणी सर्वहितकारी, सुस्पष्ट, श्रुतसम्मत है और गालियों से रहित है? क्या मैं मूलविहीन नही? क्या इन मुस्लिम विधर्मियों से अधिक म्लेच्छता मुझमे नही? क्या मनु के प्रत्येक वचन के ठीक विपरीत मुझसे कर्म नही होता?
यह ना समझना कि कुछ ना होगा, और इस कीचड़, विष्ठा, पंक को हम सहते रहेंगे। इसमे रहने वाले सुवर की भांति तुम इसके आदि हो गए हो तो इसका यह अर्थ नहीं कि अब परिवर्तन नही होगा। जिसके सहयोग मे प्रकृति, पंच महाभूत, समस्त देवी-देवता हो उसका कथन सत्य होकर ही रहता है।
समूल शोधन होगा, और इस उन्मादतंत्र में सुख पाने वाले कुत्ते, सूकरो और शृगालो का //वध भी होगा।//
जिस प्रकार गर्भ में शिशु प्रत्येक मास सुविकसित होता जाता है उसी प्रकार श्रीगुरुदेव के नेतृत्व में अभियान गर्भावस्था में है। जब उसका प्रसवकाल आएगा तब भाग भी ना पाओगे। वह द्रुतगति को धारण करेगा तो विवेकशून्य हो जाओगे।
‘यह सब क्या हो रहा है? यह कब हुआ? वह कब हुआ’ –ऐसे प्रश्न करते रहना, फिर ना सुधरने का समय होगा ना बचने का।
इसलिए मूढ़मतियों उठो! अनाचार त्यागो ! और शुद्धवैदिक मार्ग में स्थिर रहो। अन्यथा जब प्रभास क्षेत्र में यदुवंश ना बचा तो तुम कहाँ से बचोगे। अभी समय है तो यथाशीघ्र उसका सम्मान करो। समय का अपमान करने वाला आत्मद्रोही, आत्मघाती है।
“यह करूँगा, वह करूँगा”– इस व्यूह से निकलो। हम सब शास्त्रवादी यहां किस हेतु है-यह जानो। हमारा सदुपयोग करो, अपने मार्ग का दर्शन करो।
जय श्रीमन्नारायण।
नमः पार्वतीपतये।