धर्म

“आँवला नवमी”!! अक्षय (आंवला) नवमी !!

“आँवला नवमी”!! अक्षय (आंवला) नवमी !!


अक्षय-आँवला नवमी : 10 नवम्बर

कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी ‘अक्षय नवमी’ कहलाती है । इसे धात्री नवमी, कूष्मांड नवमी भी बोलते हैं । इस दिन किया हुआ स्नान, जप, दान, मौन, सद्गुरु-सान्निध्य, सेवा बड़ा दिव्य, अक्षय फल देते हैं ।

आँवला नवमी के दिन आँवले के वृक्ष का पूजन, सत्कार, उसकी प्रदक्षिणा और आँवले का सेवन बहुत हितकारी है ।

आँवले के वृक्ष का पूजन करते समय ‘ॐ धात्र्यै नमः ।’ मंत्र का जप सिद्धिदायक कहा गया है ।

कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की नवमी बहुत खास और शुभ मानी जाती है। इस दिन उत्तर भारत और मध्य भारत में अक्षय नवमी या आँवला नवमी का पर्व मनाया जाता है। जबकि दक्षिण और पूर्व भारत में इसी दिन जगद्धात्री पूजा का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन अच्छे कार्य करने से अगले कई जन्मों तक हमें इसका पुण्य फल मिलता रहेगा। धर्म ग्रंथो के अनुसार आँवला नवमी के दिन आँवले के पेड़ पर भगवान विष्णु एवं शिव जी वास करते हैं। इसलिए इस दिन सुबह उठकर इस वृक्ष की सफाई करनी चाहिए। साथ ही इस पर दूध एवं फल चढ़ाना चाहिए। पुष्प अर्पित करने चाहिए और धूप-दीप दिखाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार आँवला नवमी या अक्षय नवमी उतनी ही शुभ और फलदायी है जीतनी की वैशाख मास की अक्षय तृतीया।

आँवला नवमी कथा–1

किसी समय काशी नगरी में एक व्यापारी और उसकी पत्नी रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। इसी कारण व्यापारी की पत्नी हमेशा दु:खी रहती थी। एक दिन उसे किसी ने कहा कि यदि वह संतान चाहती है तो उसे किसी जीवित बच्चे की बलि भैरव को चढ़ाना होगी। उसने यह बात अपने पति से कही, लेकिन पति को यह बात जरा भी पसन्द नहीं आई।
चूंकि उसकी पत्नी को संतान की बहुत अधिक लालसा थी, इसलिए उसने पति से छुपाकर और अच्छे-बुरे की परवाह किए बिना एक बच्चा चुराकर उसकी बलि भैरव बाबा को दे दी। इसका गंभीर परिणाम हुआ और व्यापारी की पत्नी को कई रोग हो गए। पत्नी की यह हालत देख व्यापारी दु:खी था। उसने इसका कारण पूछा तो पत्नी ने बताया कि बच्चे की बलि के कारण उसकी यह हालत हुए है। (“श्रीजी की चरण सेवा” की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज से जुड़े रहें) यह सुनकर व्यापारी को बहुत क्रोध आया, लेकिन पत्नी की हालत से वह दु:खी था। इसलिए उसने उपाय बताया कि वह इस पाप से मुक्ति के लिए गंगा स्नान करे और सच्चे मन से ईश्वर से प्रार्थना करे। व्यापारी की पत्नी ने कई दिनों तक यह किया।
इससे प्रसन्न होकर गंगा माता ने एक बूढ़ी औरत के रूप में व्यापारी की पत्नी को दर्शन दिए और कहा कि उसके शरीर के सारे रोग दूर हो जाएंगे, यदि वह कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी के दिन वृंदावन में व्रत रखकर आँवले के वृक्ष की पूजा करे। व्यापारी की पत्नी ने बड़े विधि-विधान से आँवला नवमी का व्रत-पूजन किया। इससे शीघ्र ही उसके सभी कष्ट दूर हो गए और उसे एक स्वस्थ व सुन्दर संतान की प्राप्ति हुई। इसी दिन से महिलायें सुख-सौभाग्य, रोग मुक्ति और उत्तम संतानसुख की प्राप्ति के लिए आँवला नवमी का व्रत करती हैं।

आँवला नवमी कथा–2

एक राजा था, उसका प्रण था वह रोज सवा मन आँवले दान करके ही खाना खाता था। इससे उसका नाम आँवलया राजा पड़ गया। एक दिन उसके बेटे बहु ने सोचा कि राजा इतने सारे आँवले रोजाना दान करते हैं, इस प्रकार तो एक दिन सारा खजाना खाली हो जायेगा। इसीलिए बेटे ने राजा से कहा की उसे इस तरह दान करना बन्द कर देना चाहिए।
बेटे की बात सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ और राजा रानी महल छोड़कर बियाबान जंगल में जाकर बैठ गये। राजा रानी आँवला दान नहीं कर पाए और प्रण के कारण कुछ खाया नहीं। जब भूखे प्यासे सात दिन हो गए तब भगवान ने सोचा कि यदि मैने इसका प्रण नहीं रखा और इसका सत नहीं रखा तो विश्वास चला जायेगा। इसलिए भगवान ने, जंगल में ही महल, राज्य और बाग -बगीचे सब बना दिए और ढेरों आँवले के पेड़ लगा दिए। सुबह राजा रानी उठे तो देखा की जंगल में उनके राज्य से भी दुगना राज्य बसा हुआ है।
राजा रानी से कहने लगा – रानी देख कहते हैं, सत मत छोड़े। सूरमा सत छोड़या पत जाये, सत की छोड़ी लक्ष्मी फेर मिलेगी आय। आओ नहा धोकर आँवले दान करें और भोजन करें। राजा रानी ने आँवले दान करके खाना खाया और खुशी- खुशी जंगल में रहने लगे।
उधर आँवला देवता का अपमान करने व माता पिता से बुरा व्यवहार करने के कारण बहु बेटे के बुरे दिन आ गए। राज्य दुश्मनों ने छीन लिया दाने-दाने को मोहताज हो गए और काम ढूंढते हुए अपने पिताजी के राज्य में आ पहुँचे। उनके हालात इतने बिगड़े हुए थे कि पिता ने उन्हें बिना पहचाने हुए काम पर रख लिया। (“श्रीजी की चरण सेवा” की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज से जुड़े रहें) बेटे बहु सोच भी नहीं सकते कि उनके माता-पिता इतने बड़े राज्य के मलिक भी हो सकते है सो उन्होंने भी अपने माता-पिता को नहीं पहचाना।
एक दिन बहु ने सास के बाल गूँथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा। उसे यह सोचकर रोना आने लगा की ऐसा मस्सा मेरी सास के भी था। हमने ये सोचकर उन्हें आँवले दान करने से रोका था की हमारा धन नष्ट हो जायेगा। आज वे लोग न जाने कहाँ होंगे ? यह सोचकर बहु को रोना आने लगा और आँसू टपक-टपक कर सास की पीठ पर गिरने लगे। रानी ने तुरन्त पलट कर देखा और पूछा की , तू क्यों रो रही है ?
उसने बताया आपकी पीठ जैसा मस्सा मेरी सास की पीठ पर भी था। हमने उन्हें आँवले दान करने से मना कर दिया था इसलिए वे घर छोड़कर कही चले गए। तब रानी ने उन्हें पहचान लिया। सारा हाल पूछा और अपना हाल बताया। अपने बेटे बहु को समझाया की दान करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है। बेटे बहु भी अब सुख से राजा रानी के साथ रहने लगे।
हे भगवान ! जैसा राजा रानी का सत रखा वैसा सबका सत रखना। कहते सुनते सारे परिवार का सुख रखना।

पूजन सामग्री

आँवले का पौधा, फल, तुलसी के पत्ते एवं तुलसी का पौधा, कलश और जल, कुमकुम, सिंदूर, हल्दी, अबीर-गुलाल, चावल, नारियल, सूत, धूप-दीप, श्रृंगार का सामान और साड़ी-ब्लाउज, दान के लिए अनाज।

पूजन विधि

पूजा विधान
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प्रातः काल स्नानादि के अनन्तर दाहिने हाथ में जल, अक्षत्, पुष्प आदि लेकर निम्न प्रकार से व्रत का संकल्प करें –

‘अद्येत्यादि अमुकगोत्रोsमुक शर्माहं(वर्मा, गुप्तो, वा) ममाखिलपापक्षयपूर्वकधर्मार्थकाममोक्षसिद्धिद्वारा श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये’
ऐसा संकल्प कर धात्री वृक्ष (आंवला) के नीचे पूरब की ओर मुखकर बैठें और

‘ऊँ धात्र्यै नम:’

मंत्र से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करके निम्नलिखित मन्त्रों से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें।

मंत्र
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पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।
ते पिबन्तु मया द्त्तं धात्रीमूलेSक्षयं पय:।।
आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।
ते पिबन्तु मया द्त्तं धात्रीमूलेSक्षयं पय:।।
इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में निम्न मंत्र से सूत्र लपेटें-

दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।
सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोSस्तु ते।।

इसके बाद वृक्ष की जड़ों को दूध से सींच कर उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटना चाहिए। तत्पश्चात रोली, चावल, धूप दीप से वृक्ष की पूजा करें। और आँवले के वृक्ष की 108 परिक्रमाएं करने के बाद कपूर या घी के दीपक से आंवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मंत्र से उसकी प्रदक्षिणा करें-

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।

इसके बाद आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण भोजन भी कराना चाहिए और अन्त मे स्वयं भी आंवले के वृक्ष के सन्निकट बैठकर भोजन करें। एक पका हुआ कोंहड़ा (कूष्माण्ड) लेकर उसके अंदर रत्न, सुवर्ण, रजत या रुपया आदि रखकर निम्न संकल्प करें-

‘ममाखिलपापक्षयपूर्वकसुखसौभाग्यादीनामुत्तरोत्तराभिवद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये’

आज ही विष्णु भगवान ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल उत्पन्न हुई। इसी कारण आज के दिन कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसलिये इसके बाद विद्वान तथा सदाचारी ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणा सहित कूष्माण्ड दे दें और निम्न प्रार्थना करें-

कूष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा।
दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।

पितरों के शीतनिवारण के लिए यथा शक्ति कम्बल आदि ऊर्णवस्त्र भी सत्पात्र ब्राह्मण को देना चाहिये।

यह अक्षय नवमी ‘धात्रीनवमी’ तथा ‘कूष्माण्ड नवमी’ भी कहलाती है। घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे आदि में आंवले के वृक्ष के समीप जाकर पूजा दान आदि करने की परम्परा है अथवा गमले में आंवले का पौधा रोपित कर घर मे यह कार्य सम्पन्न कर लेना चाहिए।

प्रात:काल स्नान कर आँवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। पूजा करने के लिए आँवले के वृक्ष की पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर षोडशोपचार पूजन करें। दाहिने हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प करें। (‘श्रीजी की चरण सेवा’ की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज से जुड़े रहें) संकल्प के बाद आँवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके ‘ॐ धात्र्यै नम:’ मंत्र से आह्वानादि षोडशोपचार पूजन करके आँवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें। फिर कर्पूर या घृतपूर्ण दीप से आँवले के वृक्ष की आरती करें।
अब पूजन की कथा कहें एवं सभी महिलायें इक्कट्ठा होकर कथा सुनें। पूजा के बाद पेड़ की कम से कम सात बार परिक्रमा करें, तभी सूत भी लपेटे। वैसे मान्यता है कि जो भी इस दिन आँवले के वृक्ष की 108 बार परिक्रमा करता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती है। परिक्रमा के समाप्त होने पर फिर वहीं पेड़ के नीचे अथवा पास में बैठकर भोजन करें। ऐसी मान्यता है की इस परम्परा की शुरुआत माता लक्ष्मी ने की थी।
इस संदर्भ में कथा है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आयीं। रास्ते में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी माँ ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तभी उन्हें ख्याल आया कि तुलसी एवं बेल का गुण एक साथ आँवले में पाया जाता है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल शिव को।
आँवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह मानकर माँ लक्ष्मी ने आँवले की वृक्ष की पूजा की। पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आँवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। इसी समय से यह परम्परा चली आ रही है।
इस दिन किसी गरीब अथवा ब्राह्मण महिला को श्रृंगार का सामान एवं साड़ी-ब्लाउज दान करें एवं दक्षिणा दें। इस दिन अपने सामर्थ्य अनुसार गरीबों को अनाज का भी दान करें।

आँवला नवमी का महत्व

1. मान्यता है कि जो व्यक्ति आँवला नवमी या अक्षय नवमी का व्रत रखता है अथवा पूजा करता है उसे असीम शांति मिलती है। उसका मन पवित्र होता है और वह जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है। इसलिए उसे बार-बार जन्म लेने की आवश्यकता नही होती है। वह अपने लक्ष्य को भली-भांति समझता है।

2. जो महिलायें आँवला नवमी की पूजा करती हैं उन्हें उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। वह दीर्घायु होता है और समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। वह अपने वंश का नाम रोशन करने वाला होता है। इसके अतिरिक्त इस पूजा से घर का वंश भी बढ़ता है।

3. कहते हैं आँवला नवमी की पूजा से पति-पत्नी के बीच रिश्ता बहुत ही मधुर होता है। दोनों के बीच आपसी तालमेल बहुत अच्छा रहता है। इसका एक वैज्ञानिक फायदा भी है। कहा जाता है कि ये आँवले के सेवन से गरिष्ठ भोजन जल्दी पच जाता है।

4. आँवला नवमी के दिन आँवले के पेड़ के नीचे बैठकर ही भोजन करना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन भोजन करते समय यदि आपकी थाली में आँवला या उसका पत्ता गिरे तो यह बहुत ही शुभ संकेत होता है। माना जाता है कि इससे आप वर्ष भर स्वस्थ्य रहेंगे।

5. अक्षय नवमी को कार्तिक शुक्ल नवमी भी कहते हैं। इसी दिन द्वापर युग का भी आरम्भ हुआ था। इसके अतिरिक्त इस दिन भगवान विष्णु ने कुष्माँडक नामक असुर का वध किया था। तभी उसके रोम से कुष्माँड नामक बेल उत्पन्न हुई थी। इसलिए इस इस बेल का दान करने से बेहतर परिणाम मिलते है।

विचारणीय
अक्षय नवमी पर जीवन की कठिनाइयों में कमी लाने के उपाय

👉 अक्षय नवमी के दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें। इस उपाय को करने से देवी लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हो घर में सदा के लिए वास करती है।

👉 अक्षय नवमी के दिन अपने स्नान करने के लिए गए जल में आवंला के रस की कुछ बूंदे डालें। ऐसा करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा तो जाएगी ही साथ ही माता लक्ष्मी भी घर में विराजमान होंगी।

👉 अक्षय नवमी के दिन शाम के समय घर के ईशान कोण में घी का दीपक प्रज्जवलित करें। बत्ती में रुई के स्थान पर लाल रंग के धागे का उपयोग करें। संभव हो तो दीपक में केसर भी डाल दें। इससे देवी जल्द प्रसन्न हो कृपा करेंगी।

👉 5 कुंवारी कन्याओं को घर बुलाकर खीर खिलाएं। सभी कन्याओं को पीला वस्त्र व दक्षिणा देकर विदा करें। इससे माता लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न होती हैं। अपने भक्तों पर कृपा बरसाती है।

👉 किसी लंगड़े व्यक्ति को काले वस्त्र और मिठाई दान करें। इस दिन दान देने से देवी दानी के घर में वास करती है। साथ ही उसे अचल सम्पत्ति का वरदान भी देती है।

👉 श्रीयंत्र का गाय के दूध के अभिषेक करें। अभिषेक का जल की छींटे पूरे घर में करें। श्रीयंत्र पर कमलगट्टे के साथ तिजोरी में पर रख दें। इससे अवश्य धन लाभ होता है।

👉 श्यामा गाय की सेवा कर उन्हें हरा चारा खिलाएं। मान्यता है कि गौ माता में सभी देवी- देवताओं का वास होता है इसलिए उनकी सेवा करने से देवी जल्द ही प्रसन्न होती है। और घर में धन वर्षा करती है।

👉 अगर आपकी कुंडली में शनि दोष है तो अक्षय नवमी के दिन से आरंभ कर 41 दिन लगातार लाल मसूर की दाल की कच्ची रोटी बनाकर मछलियों को खिलाएं इससे मंगल ग्रह मजबूत होता है कर्ज अथवा भूमि जायदाद संबंधित समस्या में कमी आती है साथ ही माता महालक्ष्मी की कृपा भी बरसती है।

👉 मंगल ग्रह शांति के लिए ब्राह्मणों एवं गरीबों को गुड़ मिश्रित दूध या चावल खिलाएं।

👉 नवमी तिथि की स्वामी देवी दुर्गा हैं ऎसे में जातक को दुर्गा की उपासना अवश्य करनी चाहिए. जीवन में यदि कोई संकट है अथवा किसी प्रकार की अड़चनें आने से काम नही हो पा रहा है तो जातक को चाहिए की दुर्गा सप्तशती के पाठ को करे और मां दुर्गा से अपने जीवन में आने वाले संकटों को हरने की प्रार्थना करे।

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