भारत में अधिक स्कूल और बच्चों के बावजूद, नामांकन दर में चीन से पिछड़ना: विस्तृत विश्लेषण
भारत और चीन दोनों के पास बड़ी संख्या में स्कूल और छात्र हैं, लेकिन चीन के मुकाबले भारत में अधिक स्कूल और बच्चों के बावजूद नामांकन दर और शिक्षा की गुणवत्ता में अंतर देखा जाता है।
भारत में अधिक स्कूल और बच्चों के बावजूद, नामांकन दर में चीन से पिछड़ना: विस्तृत विश्लेषण
भारत और चीन दोनों के पास बड़ी संख्या में स्कूल और छात्र हैं, लेकिन चीन के मुकाबले भारत में अधिक स्कूल और बच्चों के बावजूद नामांकन दर और शिक्षा की गुणवत्ता में अंतर देखा जाता है।
इसके अतिरिक्त, विभिन्न शैक्षिक धाराओं में छात्रों के रुझान भी इन दोनों देशों में भिन्न हैं। आइए इसे संख्यात्मक रूप में समझते हैं।
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1. भारत और चीन का स्कूल और छात्रों का आंकड़ा
भारत में स्कूल:
भारत में कुल 15 लाख स्कूल हैं।
भारत में कुल 26.5 करोड़ बच्चे (5-18 वर्ष आयु समूह) हैं जो स्कूलों में नामांकित हैं।
चीन में स्कूल:
चीन में कुल 5 लाख स्कूल हैं।
चीन में कुल 29 करोड़ बच्चे (5-18 वर्ष आयु समूह) स्कूलों में नामांकित हैं।
यह आंकड़ा बताता है कि चीन में स्कूलों की संख्या कम होने के बावजूद, स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या अधिक है, जिसका कारण शिक्षा के क्षेत्र में अधिक निवेश और बेहतर संसाधनों का उपयोग हो सकता है।
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2. भारत में छोटे और ग्रामीण स्कूलों की स्थिति
भारत में छोटे स्कूलों की समस्या:
भारत में 60% स्कूल ग्रामीण इलाकों में स्थित हैं, जिनकी संख्या 10-20 छात्रों वाली होती है।
इन छोटे स्कूलों में प्रारंभिक शिक्षा के लिए पर्याप्त शिक्षकों की कमी, बुनियादी ढांचे का अभाव और शैक्षिक संसाधनों की कमी है।
गंभीर शिक्षक-छात्र अनुपात:
भारत में शिक्षक-छात्र अनुपात 1:30 है, लेकिन यह अनुपात ग्रामीण और छोटे स्कूलों में 1:50 तक जा सकता है।
इसका मतलब है कि शिक्षकों की कमी और छात्रों पर अधिक दबाव, शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
ग्रामीण इलाकों में स्कूलों की स्थिति:
45% ग्रामीण स्कूलों में पानी, बिजली, बाथरूम जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी है।
इसके परिणामस्वरूप, छोटे स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव होता है, जिससे नए छात्र नामांकित नहीं होते और बच्चे ड्रॉप आउट कर जाते हैं।
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3. भारत में शिक्षा के क्षेत्र में निवेश: GDP के अनुपात में खर्च
भारत का शिक्षा बजट:
भारत अपने GDP का लगभग 2.9% शिक्षा पर खर्च करता है।
यह निवेश, विशेष रूप से ग्रामीण इलाकों में, शिक्षकों, सुविधाओं और तकनीकी संसाधनों की कमी के कारण समस्या का समाधान नहीं कर पा रहा है।
चीन का शिक्षा बजट:
चीन अपने GDP का लगभग 4% शिक्षा पर खर्च करता है। जबकि चीन की GDP भारत से पांच गुना बड़ी हैl
इससे चीन में बेहतर स्कूलों की संख्या, अच्छे शिक्षकों का अनुपात, और उन्नत तकनीकी संसाधन उपलब्ध हो पाते हैं।
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4. भारत और चीन में शिक्षकों की संख्या
भारत में शिक्षक:
भारत में शिक्षकों की कुल संख्या लगभग 1.1 करोड है।
शिक्षक-छात्र अनुपात भारत में 1:30 है, लेकिन छोटे और ग्रामीण स्कूलों में यह अनुपात 1:50 तक जा सकता है, जिससे शिक्षकों की कमी महसूस होती है।
चीन में शिक्षक:
चीन में कुल शिक्षकों की संख्या लगभग 1.9 करोड है।
चीन का शिक्षक-छात्र अनुपात लगभग 1:19 है, जो कि भारत से कहीं बेहतर है, और इससे छात्रों को अधिक व्यक्तिगत ध्यान मिलता है।
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5. भारत में स्कूलों से बाहर बच्चे और ड्रॉप आउट दर
स्कूल से बाहर बच्चे:
भारत में 3.3 करोड़ बच्चे (6-14 वर्ष आयु वर्ग) अभी भी स्कूल से बाहर हैं।
यह संख्या चीन में 1 करोड़ के आस-पास है, जहां शिक्षा की अधिक सुलभता और गुणवत्ता सुनिश्चित की गई है।
ड्रॉप आउट दर:
कक्षा 1 से कक्षा 10 तक ड्रॉप आउट दर भारत में 17% है, जबकि चीन में यह दर 5% से भी कम है।
भारतीय बच्चों के स्कूल छोड़ने के कारण अर्थिक संकट, बाल श्रम, और नौकरी के अवसर हैं, जो उन्हें शिक्षा से दूर कर देते हैं।
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6. भारत और चीन में छात्रों का धारा चयन (Stream Choice)
चीन का STEM पर जोर:
चीन ने शिक्षा प्रणाली में STEM (Science, Technology, Engineering, Mathematics) पर विशेष जोर दिया है।
छात्रों का लगभग 60% हिस्सा STEM से संबंधित क्षेत्रों में प्रवेश करता है।
चीन के तकनीकी और विज्ञान क्षेत्रों में बेहतर अवसर और सरकारी प्रोत्साहन इसे आर्थिक और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में मजबूत बनाता है।
भारत में मानविकी (Humanities) का दबदबा, विशेष रूप से उत्तर पश्चिम में:
भारत में मानविकी (Humanities), सामाजिक विज्ञान और कला में रुचि रखने वाले छात्रों की संख्या अधिक है, विशेषकर उत्तर पश्चिम भारत में।
राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कारणों से भारत में मानविकी को प्राथमिकता दी जाती है। इसके अलावा, स्टेट बोर्ड की शिक्षा प्रणाली में मनोरंजन और नौकरी के अवसरों के रूप में मानविकी को एक अधिक सुरक्षित और प्रतिष्ठित मार्ग माना जाता है।
विभिन्न धाराओं के चयन का प्रभाव:
भारत में अधिकतर छात्र मानविकी या कला क्षेत्र में प्रवेश करते हैं क्योंकि यह क्षेत्रों में आर्थिक सुरक्षा और पारंपरिक अवसर अधिक होते हैं।
वहीं, चीन में छात्र विज्ञान और तकनीकी क्षेत्रों की ओर अग्रसर होते हैं क्योंकि वहां टेक्नोलॉजी, अनुसंधान और विकास को उच्च प्राथमिकता दी जाती है, जो देश की आर्थिक वृद्धि और वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए महत्वपूर्ण है।
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7. भारत में शिक्षा प्रणाली में सुधार की जरूरत
भारत में अधिक स्कूल होने के बावजूद, चीन की तुलना में निम्नलिखित कारणों से स्कूलों में नामांकन की दर कम है:
शिक्षक-छात्र अनुपात में असंतुलन और शिक्षकों की कमी।
वित्तीय संसाधनों की कमी, खासकर ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में।
ड्रॉप आउट दर को नियंत्रित करने के लिए अनिवार्य शिक्षा नीति और स्कूल छोड़ने के कारणों को हल करने की आवश्यकता।
शहरी और ग्रामीण शिक्षा के बीच अंतर: शहरी इलाकों में अधिक संसाधन उपलब्ध होने के बावजूद, ग्रामीण इलाकों में शिक्षा का स्तर बहुत निचला है।
धारा चयन में चीन की STEM को प्राथमिकता देने के साथ भारत में मानविकी और सामाजिक विज्ञान को अधिक महत्व दिया जा रहा है, जिससे प्रौद्योगिकी और विज्ञान में भारतीय छात्रों की हिस्सेदारी कम रहती है।
निष्कर्ष:
भारत में अधिक स्कूल होने और बच्चों की अधिक संख्या के बावजूद, शिक्षक-छात्र अनुपात, संसाधनों की कमी, सामाजिक बाधाएँ, और धारा चयन में भिन्नताएँ भारत की शिक्षा प्रणाली में चुनौतियाँ पैदा करती हैं। चीन ने शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक निवेश, बेहतर योजनाएँ और STEM क्षेत्र में जोर के माध्यम से इन समस्याओं को हल किया है, जिसके परिणामस्वरूप वहाँ उच्च नामांकन दर और कम ड्रॉप आउट दर देखी जाती है।
भारत को शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए अधिक संसाधन निवेश, ग्रामीण इलाकों में बेहतर सुविधाएँ, शिक्षकों की संख्या बढ़ाने, और STEM क्षेत्र में फोकस बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि यह चीन से शिक्षा के मामले में पीछे न रहे।