देवउठनी एकादशी से शुरू होगा बैंड-बाजा बारात का दौर, शुरू होंगे मांगलिक कार्य
भारतीय सनातन परंपरा में हर तिथि का एक विशेष धार्मिक महत्व है और प्रत्येक तिथि किसी न किसी देवी-देवता की पूजा से जुड़ी है। इस क्रम में कार्तिक माह की एकादशी तिथि को खास महत्व प्राप्त है, जिसे देवप्रबोधिनी, हरि प्रबोधिनी या देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन से भगवान विष्णु की योग निद्रा समाप्त होती है और सभी मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है।
इस बार देवउठनी एकादशी का पर्व 12 नवंबर, मंगलवार को मनाया जाएगा। 11 नवंबर की शाम से 12 नवंबर की शाम तक यह तिथि प्रभावी रहेगी। व्रत रखने वाले भक्त प्रातः स्नानादि के बाद भगवान विष्णु की विशेष पूजा करेंगे। एकादशी व्रत के दौरान “ऊं विष्णवे नमः” का जप किया जाना विशेष फलदायी माना गया है।
देवउठनी एकादशी पर तुलसी विवाह का भी विशेष महत्व है। इस दिन गन्ने से मंडप बनाकर भगवान शालिग्राम के साथ तुलसी का विवाह रचाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक माह की इस एकादशी से लेकर पूर्णिमा तक तुलसी की पूजा अर्चना से जीवन में सुख-शांति प्राप्त होती है।
देवउठनी एकादशी से भीष्म पंचक व्रत भी प्रारंभ होता है, जिसे पांडवों को दिए गए भीष्म पितामह के उपदेश के साथ जोड़ा गया है। इस व्रत को पूर्णिमा तक करने का विधान है और इसे भगवान श्रीकृष्ण नें भी मान्यता दी है।
विवाह के शुभ मुहूर्त
नवंबर: 12, 13, 16, 17, 18, 24, 25, 26
दिसंबर: 1, 2, 3, 4, 5, 9, 10, 11
जनवरी 2025: 16, 18, 19, 21, 24, 26, 27
फरवरी: 1, 2, 3, 8, 12, 14, 15, 16, 22, 23, 24
मार्च: 1, 2, 3
अप्रैल: 15, 16, 20, 25, 26
मई: 1, 7, 8, 9, 11, 15, 16, 22, 23, 24, 27
जून: 3, 4, 5
इस देवउठनी एकादशी पर व्रत और पूजा-अर्चना के साथ विवाह आयोजन के लिए भी तैयारियां जोरों पर हैं, जिनमें बताए गए मुहूर्त विशेष रूप से शुभ माने गए हैं।