टॉप न्यूज़धर्म

विवाह में सप्तपदी का महत्त्व (इसे सात फेरे समझना महान भूल है) सप्तपदी सात फेरे नहीं है, फेरे ४ ही होते हैं

विवाह में सप्तपदी का महत्त्व (इसे सात फेरे समझना महान भूल है) सप्तपदी सात फेरे नहीं है, फेरे ४ ही होते हैं

विवाह में इस सप्तपदी कर्म का बड़ा महत्त्व है। इसमें वर वधू का दांया चरण अग्नि से उत्तर एक एक मन्त्र पढते हुए क्रमशः रखवाता है।

इसके लिए अग्निकुण्ड से उत्तर कुछ कुछ दूरी पर अपनी परम्परा या प्रसिद्ध कुलाचार अथवा देशाचार के अनुसार सात स्थानों पर थोड़ा थोड़ा चावल या पान के पत्ते अथवा मेंहदी रखवानी चाहिए।

महर्षि पारस्कर अपने गृह्यसूत्र में लिखते हैं —

“अथैनामुदीचीं सप्तपदानि प्रक्रामयति –विष्णुस्त्वा नयतु सर्वत्रानुसजति ” । ।
—प्रथमकाण्ड,अष्टमी कण्डिका-1–2,

वर वधू को अग्नि से उत्तर दांये पैर को दांये हाथ का सहारा देकर सात पग चलाता है।

इस एक एक पग को पूर्वोक्त वस्तुओं में किसी पर भी रखने पर वर स्वयं मन्त्र पढे।

1-एकमिषे विष्णुस्त्वा नयतु – यह मन्त्रवर के पढने के बाद वधू का दाया चरण प्रथम चावल आदि पर रखवाये।
यह पग जीवन में अन्न की प्राप्ति के लिए है।

इसमें विकृति आने का परिणाम दाम्पत्य जीवन में अन्न की कमी के रूप में आता है। उन खाद्य पदार्थों का अभाव जीवन में प्रायः दिखता है।

2-द्वे ऊर्ज्जे विष्णुस्त्वा नयतु – यह दूसरा पद बल प्राप्ति के लिए है। इसके विकृति का परिणाम है अनेक रोगों का आक्रमण होने पर निर्बल पड़ जाना। जो आज प्रत्यक्ष दिख रहा है।

3–त्रीणि रायस्पोषाय विष्णुस्त्वा नयतु – इस मन्त्रसे पद रखने का प्रभाव धन की पुष्टि के लिए है।
इसका प्रभाव धन की स्थिरता के रूप में दिखता है। इसके त्याग से धन आने पर भी रुकता नही।

4- चत्वारि मायोभवाय विष्णुस्त्वा नयतु – इस मन्त्र से कन्या के पद रखवाने का फल सुख समृद्धि रूप है।
इसकी विकृति का परिणाम है- सब कुछ रहते हुए भी दुःख से ग्रस्त रहना।

5–पञ्च पशुभ्यो विष्णुस्त्वा नयतु – इस मन्त्रसे कन्या के पग रखवाने का फल है- पशुओं की प्राप्ति के लिए।

इसमें विकृति का परिणाम आज गोवध के रूप में दिख रहा है। हम जिसे प्राप्त करके यज्ञादि शुभ कर्म के साथ बल विवेक की वृद्धि करते आज उसी वंश के विनाश के साथ हमारे सत्कर्मो का भी विनाश हो रहा है।

6– षडृतुभ्यो विष्णुस्त्वा नयतु — इस मन्त्र से कन्या के पद रखवाने का प्रभाव “ऋतुजन्य सुख की प्राप्ति के लिए है।”
इसके त्याग अर्थात् विधिवत् न करवाने का प्रभाव आज ऋतुओं में होने वाले सुख की प्राप्त कराने वाली वस्तुएं या तो उपलब्ध नहीं होंगी। अथवा आज इसका सामूहिक त्याग असमय ऋतुओं में विभिन्न विकृतियों के रूप में दिख रहा है।

7-सखे सप्तपदा भव सा मामनुव्रता भवविष्णुस्त्वा नयतु –इस मन्त्र से कन्या के पग रखवाने का प्रभाव है –मैत्रीभाव।
इसके अनुष्ठान से जीवन भर पति पत्नी में मैत्री भाव बना रहता है।
वर द्वारा कन्या के लिए “सखे” शब्द का सम्बोधन अपने से अभिन्न समझकर किया है। अन्यथा सखि शब्द का सम्बोधन करता।
यह पति पत्नी में “अर्धनारीश्वर” की भावना ओतप्रोत कर देता है।
तथा पत्नी की ख्याति 7 लोकों में फैलाना और पत्नी को सदा पति के अनुकूल बनाना इस मन्त्र के द्वारा इस सातवें पद रखवाने का प्रमुख कार्य है।

इसमें विकृति आने से आज पति पत्नी में प्रतिदिन अविश्वास और महाभारत छिड़ा रहता है।

यही इस सप्तपदी कर्म का अद्भुत प्रभाव है। जो आज कल के तथाकथित सभ्य समाज को ढकोसला या समयबचत की भावना के कारण इसका छूट जाना महान अनर्थ का कारण है।
इस सप्तपदी को 7 फेरे समझना भी महान भूल है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
error: Content is protected !!