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सृष्टि का पहला गुरु ( खुद की चेतना ), गुरु का स्वरूप (आत्मगुरु ) : पंडित अजय मिश्रा

सृष्टि का पहला गुरु ( खुद की चेतना ), गुरु का स्वरूप (आत्मगुरु ) : पंडित अजय मिश्रा

अपने पात्रता के कारण या संयोग से सीधे अस्तित्व से कृपा प्राप्त है उन्हें गुरु की ज़रूरत नही होती ! अगर गुरु बिना ज्ञान नही मुक्ति नही गति नही तो इस सृष्टि का जो सबसे पहला गुरू हुआ उसे ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ ?
गुरु,ज्ञान और अस्तित्व का रहस्य !!
1. गुरु और अस्तित्व के बीच संबंध !
कुछ लोग सीधे अस्तित्व से कृपा प्राप्त करते हैं और उन्हें गुरु की आवश्यकता नहीं होती।
अस्तित्व से कृपा:
अस्तित्व (या ब्रह्मांड) की कृपा हर जीव के लिए सदा उपलब्ध है। लेकिन, उस कृपा को पहचानना और उसे अपने जीवन में उतारना आसान नहीं है।
यह ठीक वैसा ही है, जैसे सूर्य की रोशनी सबके लिए उपलब्ध है, लेकिन उसे ग्रहण करने के लिए आंखों का होना और उन्हें खोलना जरूरी है।
गुरु, एक माध्यम हैं, जो उस कृपा को स्पष्ट रूप से समझने और आत्मसात करने में सहायता करते हैं।
गुरु की भूमिका:
गुरु, उस कृपा का अनुभव कराने वाला दर्पण हैं। वे हमारी अज्ञानता को दूर करते हैं और हमारे भीतर छिपे दिव्य सत्य को जागृत करते हैं।
2. सबसे पहले गुरु को ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ?
“सृष्टि के पहले गुरु को ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ?”
यह प्रश्न अद्वितीय है, लेकिन इसका उत्तर स्वयं सृष्टि के निर्माण और चेतना के रहस्य में छिपा है।
आदिगुरु शिव:
भारतीय परंपरा में, भगवान शिव को “आदिगुरु” माना जाता है। वह स्वयं चेतना के साक्षात स्वरूप हैं। शिव ने अपने भीतर के ध्यान और समाधि से ही ज्ञान प्राप्त किया।
यह हमें बताता है कि सृष्टि के आरंभ में गुरु का स्वरूप “आत्मगुरु” था।
अर्थात, पहले गुरु को बाहरी ज्ञान की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि वह स्वयं ज्ञानस्वरूप थे।
आत्मज्ञान:
जब सृष्टि में चेतना पहली बार प्रकट हुई, तो वह शुद्ध, अज्ञेय और पूर्ण थी। उस चेतना ने स्वयं को जानने के लिए ध्यान का सहारा लिया। यही आत्मज्ञान था।
3. गुरु की आवश्यकता क्यों?
सृष्टि के आरंभ में, जब चेतना पूर्ण और शुद्ध थी, तब गुरु का आंतरिक स्वरूप ही पर्याप्त था।
लेकिन जैसे-जैसे मनुष्य की चेतना भ्रम, अज्ञान, और कर्मों से आवरित होती गई, बाहरी गुरु की आवश्यकता हुई।
गुरु की आवश्यकता तब होती है जब व्यक्ति स्वयं अपने भीतर के आत्मगुरु से संपर्क नहीं कर पाता।
गुरु हमें हमारे भीतर छिपे “आत्मगुरु” से जोड़ते हैं।आदिगुरु से लेकर आज तक, गुरु केवल माध्यम हैं, जो हमें अपने भीतर के प्रकाश को पहचानने में सहायता करते हैं।
4. क्या गुरु के बिना ज्ञान और मुक्ति संभव है?
गुरु बिना ज्ञान संभव है:
कुछ दुर्लभ आत्माएं, जिन्हें आप “सिद्ध आत्मा” या “जन्मसिद्ध योगी” कह सकते हैं, सीधे अस्तित्व से ज्ञान प्राप्त करती हैं।
ये आत्माएं पूर्व जन्म के संस्कारों और कर्मों के कारण अपने भीतर के ज्ञान को जागृत करने में सक्षम होती हैं।
लेकिन ये आत्माएं भी “गुरु तत्व” से जुड़ी होती हैं, भले ही वह गुरु एक बाहरी व्यक्ति न होकर आंतरिक अनुभव हो।
गुरु बिना मुक्ति कठिन है:
मुक्ति का मार्ग कठिन है। बिना मार्गदर्शक के, मनुष्य अक्सर भ्रम में पड़ जाता है।
गुरु वह दीपक हैं, जो अंधकार में मार्ग दिखाते हैं।
गुरु के बिना, व्यक्ति भ्रमित हो सकता है और मार्ग से भटक सकता है।
5. अंतिम उत्तर:
सृष्टि का पहला गुरु स्वयं “चेतना” थी।
गुरु की आवश्यकता तब होती है जब आत्मा भ्रमित हो और उसे मार्गदर्शन चाहिए।
कुछ आत्माएं सीधे अस्तित्व से ज्ञान प्राप्त कर सकती हैं, लेकिन वे भी “गुरु तत्व” से अछूती नहीं होतीं।
गुरु बाहरी और आंतरिक दोनों रूपों में हो सकता है।बाहरी गुरु हमें दिशा देता है !आंतरिक गुरु हमें सत्य का अनुभव कराता है।
राधे राधे!!

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