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भारतीय संस्कृति में पुराणों का महत्त्व

पुराण शब्द का अर्थ है प्राचीन कथा। पुराण विश्व साहित्य के प्रचीनतम ग्रंथ हैं। उनमें लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं।

भारतीय संस्कृति में पुराणों का महत्त्व
रिपोर्ट : प्रदीप शुक्ल, ब्यूरो चीफ – युटीवी खबर

पुराण शब्द का अर्थ है प्राचीन कथा। पुराण विश्व साहित्य के प्रचीनतम ग्रंथ हैं। उनमें लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं। वेदों की भाषा तथा शैली कठिन है। पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं। उनमें जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है। पुराणों का विषय नैतिकता, विचार, भूगोल, खगोल, राजनीति, संस्कृति, सामाजिक परम्परायें, विज्ञान तथा अन्य विषय हैं। विशेष तथ्य यह है कि पुराणों में देवी-देवताओं, राजाओं और ऋषि-मुनियों के साथ साथ जन साधारण की कथाओं का भी उल्लेख किया गया हैं जिससे पौराणिक काल के सभी पहलूओं का चित्रण मिलता है।
महृर्षि वेदव्यास जी ने 18 पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है। ब्रह्माजी विष्णुजी तथा महेश्वरजी उन पुराणों के मुख्य देव हैं।त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवानजी स्वरूप को छः पुराण समर्पित किये गये हैं। इन 18 पुराणों के अतिरिक्त 16 उप-पुराण भी हैं किन्तु विषय को सीमित रखने के लिये केवल मुख्य पुराणों का संक्षिप्त परिचय ही दिया गया है। मुख्य पुराणों का वर्णन इस प्रकार हैः-
1. श्रीब्रह्म पुराण – श्री ब्रह्म पुराण सब से प्राचीन है। इस पुराण में 246 अध्याय तथा 14000 श्लोक हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्माजी की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगाजी अवतरण तथा श्री रामायणजी और श्री कृष्णावतार की कथाएं भी संकलित हैं। इस ग्रंथ से सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी की सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
2. श्रीपद्म पुराण- श्री पद्म पुराण में 55000 श्र्लोक हैं और यह ग्रंथ पांच खण्डों में विभाजित है जिनके नाम सृष्टि खण्ड, स्वर्ग खण्ड, उत्तर खण्ड,भूमि खण्ड तथा पाताल खण्ड हैं। इस ग्रंथ में पृथ्वी, आकाश तथा नक्षत्रों की उत्पति के बारे में उल्लेख किया गया है। चार प्रकार से जीवों की उत्पत्ति होती हैं जिन्हें उद्भज, स्वेदज, अंडज तथा जरायुज की श्रेणा में रखा गया है। यह वर्गीकरण पूर्णतया वैज्ञानिक है। भारत के सभी पर्वतों तथा नदियों के बारे में भी विस्तृत वर्णन है। इस पुराण में शकुन्तला दुष्यन्त से ले कर भगवान श्री रामजी तक के कई पूर्वजों का इतिहास है। शकुन्तला दुष्यन्त के पुत्र भरत के नाम से हमारे देश का नाम जम्बूदीप से भरतखण्ड और पश्चात भारत पड़ा था।
3. श्रीविष्णु पुराण – श्री विष्णु पुराण में 6 अंश तथा 23000 श्लोक हैं। इस ग्रंथ में भगवान विष्णुजी, बालक ध्रुव जी तथा श्री कृष्णावतार की कथायें संकलित हैं। इसके अतिरिक्त सम्राट पृथु की कथा भी शामिल है जिसके कारण हमारी धरती का नाम पृथ्वी पड़ा था। इस पुराण में सू्र्यवंशी तथा चन्द्रवंशी राजाओं का इतिहास है। भारत की राष्ट्रीय पहचान सदियों पुरानी है जिस का प्रमाण श्री विष्णु पुराण के निम्नलिखित शलोक में मिलता है-
उत्तरं यत्समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः। साधारण शब्दों में इस का अर्थ है कि वह भौगोलिक क्षेत्र जो उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में सागर से घिरा हुआ है भारत देश है तथा उसमें निवास करने वाले सभी जन भारत देश की ही संतान हैं। भारत देश और भारत वासियों की इससे स्पष्ट पहचान और क्या हो सकती है? श्री विष्णु पुराण वास्तव में एक ऐतिहासिक ग्रंथ है।
4. श्री शिव पुराण – श्री शिव पुराण में 24000 श्लोक हैं तथा यह सात संहिताओं में विभाजित है। इस ग्रंथ में भगवान शिवजी की महानता तथा उनसे सम्बन्धित घटनाओं को दर्शाया गया है। इस ग्रंथ को वायु पुराण भी कहते हैं। इसमें कैलाश पर्वत, शिवलिंगम तथा रुद्राक्ष का वर्णन और महत्व, सप्ताह के दिनों के नामों की रचना, प्रजापतियों तथा काम पर विजय पाने के सम्बन्ध में वर्णन किया गया है।सप्ताह के दिनों के नाम हमारे सौर मण्डल के ग्रहों पर आधारित हैं और आज भी लगभग समस्त विश्व में प्रयोग किये जाते हैं।
5. श्रीभागवत पुराण- श्रीभागवत पुराण में 18000 श्लोक हैं तथा 12 स्कंध हैं। इस ग्रंथ में अध्यात्मिक विषयों पर वार्तालाप है। भक्ति, ज्ञान तथा वैराग्य की महानता को दर्शाया गया है। विष्णुजी और श्री कृष्णावतार की कथाओं के अतिरिक्त श्री महाभारत काल से पूर्व के कई राजाओं, ऋषि मुनियों तथा असुरों की कथायें भी संकलित हैं। इस ग्रंथ में महाभारत युद्ध के पश्चात श्रीकृष्णजी का देहत्याग, द्वारिका नगरी के जलमग्न होने और यादव वंशियों के नाश तक का विवरण भी दिया गया है।
6. श्रीनारद पुराण – श्री नारद पुराण में 25000 श्लोक हैं तथा इस के दो भाग हैं। इस ग्रंथ में सभी 18 पुराणों का सार दिया गया है। प्रथम भाग में मन्त्र तथा मृत्यु पश्चात के क्रम आदि के विधान हैं। गंगाजी अवतरण की कथा भी विस्तार पूर्वक दी गयी है। दूसरे भाग में संगीत के सातों स्वरों, सप्तक के मन्द्र, मध्य तथा तार स्थानों, मूर्छनाओं, शुद्ध एवं कूट तानो और स्वरमण्डल का ज्ञान लिखित है। संगीत पद्धति का यह ज्ञान आज भी भारतीय संगीत का आधार है। जो पाश्चात्य संगीत की चकाचौंध से चकित हो जाते हैं उनके लिये उल्लेखनीय तथ्य यह है कि नारद पुराण के कई शताब्दी पश्चात तक भी पाश्चात्य संगीत में केवल पांच स्वर होते थे तथा संगीत के सिद्धांत का विकास शून्य के बराबर था। मूर्छनाओं के आधार पर ही पाश्चात्य संगीत के स्केल बने है।
7. श्रीमार्कण्डेय पुराण – अन्य पुराणों की अपेक्षा यह छोटा पुराण है। श्री मार्कण्डेय पुराण में 9000 श्लोक तथा 137 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में सामाजिक न्याय और योग के विषय में ऋषि मार्कण्डेय जी तथा ऋषि जैमिनि जी के मध्य वार्तालाप है। इसके अतिरिक्त भगवती दुर्गाजी तथा श्रीकृष्णजी से जुड़ी हुई कथाएं भी संकलित हैं।
8. श्रीअग्नि पुराण – श्री अग्नि पुराण में 383 अध्याय तथा 15000 श्र्लोक हैं। इस पुराण को भारतीय संस्कृति का ज्ञानकोष (इनसाईक्लोपीडिया) कह सकते है। इस ग्रंथ में श्रीमत्स्यावतार, श्री रामायण तथा श्री महाभारत की संक्षिप्त कथायें भी संकलित हैं। इसके अतिरिक्त कई विषयों पर वार्तालाप है जिनमें धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद मुख्य हैं। धनुर्वेद, गान्धर्व वेद तथा आयुर्वेद को उप-वेद भी कहा जाता है।
9. श्रीभविष्य पुराण- श्री भविष्य पुराण में 129 अध्याय तथा 28000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में सूर्य का महत्व, वर्ष के 12 महीनों का निर्माण,भारत के सामाजिक,धार्मिक तथा शैक्षिक विधानों आदि कई विषयों पर वार्तालाप है। इस पुराण में सांपों की पहचान, विष तथा विषदंश सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी भी दी गयी है। इस पुराण में पुराने राजवंशों के अतिरिक्त भविष्य में आने वाले नन्द वंश, मौर्य वंश, मुग़ल वंश, छत्रपति शिवा जी तक का वृतान्त भी दिया गया है। श्री सत्यनारायण जी की कथा भी इसी पुराण से ली गयी है। यह पुराण भी भारतीय इतिहास का महत्वपूर्ण स्रोत्र है जिस पर शोध कार्य करना चाहिए।
10. श्रीब्रह्मवैवर्त पुराण- श्री ब्रह्मवैवर्त पुराण में 18000 श्लोक तथा 218 अध्याय हैं। इस ग्रंथ में ब्रह्माजी, गणेशजी, तुलसीजी, सावित्रीदेवी जी, लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी तथा श्री कृष्णजी की महानता को दर्शाया गया है तथा उनसे जुड़ी हुयी कथाएं संकलित हैं। इस पुराण में आयुर्वेद सम्बन्धी ज्ञान भी संकलित है।
11. श्री लिंग पुराण- श्री लिंग पुराण में 11000 श्र्लोक और 163 अध्याय हैं। सृष्टि की उत्पत्ति तथा खगौलिक काल में युग, कल्प आदि की तालिका का वर्णन है। राजा अम्बरीष की कथा भी इसी पुराण में लिखित है। इस ग्रंथ में अघोर मंत्रों तथा अघोर विद्या के सम्बन्ध में भी उल्लेख किया गया है।
12. श्री वराह पुराण- श्री वराह पुराण में 217 स्कन्ध तथा 10000 श्लोक हैं। इस ग्रंथ में श्री वराह जी अवतार की कथा के अतिरिक्त भागवत गीता जी महात्म का भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।इस पुराण में सृष्टि के विकास, स्वर्ग, पाताल तथा अन्य लोकों का वर्णन भी दिया गया है। श्राद्ध पद्धति, सूर्य के उत्तरायण तथा दक्षिणायन विचरने, अमावस और पूर्णमासी के कारणों का वर्णन है। महत्व की बात यह है कि जो भौगोलिक और खगौलिक तथ्य इस पुराण में संकलित हैं। वही तथ्य पाश्चात्य जगत के वैज्ञानिकों को पंद्रहवी शताब्दी के बाद ही पता चले थे।
13. श्री स्कन्द पुराण- श्री स्कन्द पुराण सब से विशाल पुराण है तथा इस पुराण में 81000 श्लोक और छः खण्ड हैं। श्री स्कन्द पुराण में प्राचीन भारत का भौगोलिक वर्णन है जिसमें 27 नक्षत्रों,18 नदियों, अरुणाचल प्रदेश का सौंदर्य, भारत में स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों तथा गंगाजी अवतरण के आख्यान शामिल हैं। इसी पुराण में सहयाद्री पर्वत शृंखला तथा कन्या कुमारी जी मन्दिर का उल्लेख भी किया गया है। इसी पुराण में सोमदेव जी, तारा जी तथा उनके पुत्र बुद्ध ग्रह की उत्पत्ति की अलंकारमयी कथा भी है।
14. श्री वामन पुराण- श्री वामन पुराण में 95 अध्याय तथा 10000 श्र्लोक तथा दो खण्ड हैं। इस पुराण का केवल प्रथम खण्ड ही उपलब्ध है। इस पुराण में वामन जी अवतार की कथा विस्तार से कही गयी हैं जो भरूच कच्छ (गुजरात) में हुए थे। एक अलग मान्यता है कि वामन जी अवतार बक्सर, बिहार में हुआ था। इसके अतिरिक्त इस ग्रंथ में भी सृष्टि, जम्बूद्वीप तथा अन्य सात द्वीपों की उत्पत्ति, पृथ्वी की भौगोलिक स्थिति, महत्वशाली पर्वतों, नदियों तथा भारत के खण्डों का जिक्र है।
15. श्री कुर्म पुराण- श्री कुर्म पुराण में 18000 श्लोक तथा चार खण्ड हैं। इस पुराण में चारों वेदों का सार संक्षिप्त रूप में दिया गया है। श्री कुर्म पुराण में श्री कुर्मावतार से सम्बन्धित सागर मंथन की कथा विस्तार पूर्वक लिखी गयी है। इसमें ब्रह्माजी, शिवजी, विष्णुजी,पृथ्वी जी, गंगाजी की उत्पत्ति,चारों युगों,मानवजीवन के चार आश्रम धर्मों तथा चन्द्रवंशी राजाओं के बारे में भी वर्णन है।

16. श्री मत्स्य पुराण- श्री मत्स्य पुराण में 290 अध्याय तथा 14000 श्लोक हैं। इस ग्रंथ में श्री मत्स्य अवतार की कथा का विस्तृत उल्लेख किया गया है।सृष्टि की उत्पत्ति हमारे सौर मण्डल के सभी ग्रहों,चारों युगों तथा चन्द्रवंशी राजाओं का इतिहास वर्णित है। कच, देवयानी, शर्मिष्ठा तथा राजा ययाति जी की रोचक कथा भी इसी पुराण में है।
17. श्रीगरुड़ पुराण- श्री गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नर्क तथा 84 लाख योनियों के नर्कस्वरुपी जीवन आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। इस पुराण में कई सूर्यवंशी तथा चन्द्रवंशी राजाओं का वर्णन भी है। साधारण लोग इस ग्रंथ को पढ़ने से हिचकिचाते हैं क्योंकि इस ग्रंथ को किसी सम्बन्धी या परिचित की मृत्यु होने के पश्चात ही पढ़वाया जाता है। वास्तव में इस पुराण में मृत्यु पश्चात पुनर्जन्म होने पर गर्भ में स्थित भ्रूण की वैज्ञानिक अवस्था सांकेतिक रूप से बखान की गयी है जिसे वैतरणी नदी आदि की संज्ञा दी गई है। समस्त यूरोप में उस समय तक भ्रूण के विकास के बारे में कोई भी वैज्ञानिक जानकारी नहीं थी। अंग्रेज़ी साहित्य में जान बनियन की कृति दि पिलग्रिम्स प्रोग्रेस कदाचित इस ग्रंथ से प्रेरित लगती है जिसमें एक एवेंजलिस्ट मानव को क्रिस्चियन बनने के लिय उत्साहित करते दिखाया है तांकि वह नर्क से बच सके।
18.श्रीब्रह्माण्ड पुराण- श्री ब्रह्माण्ड पुराण में 12000 श्लोक तथा पू्र्व, मध्य और उत्तर तीन भाग हैं। मान्यता है कि अध्यात्म श्री रामायण जी पहले श्री ब्रह्माण्ड पुराण का ही एक अंश थी जो अभी एक पृथक ग्रंथ है। इस पुराण में ब्रह्माण्ड में स्थित ग्रहों के बारे में वर्णन किया गया है। कई सूर्यवंशी तथा चन्द्रवंशी राजाओं का इतिहास भी संकलित है। सृष्टि की उत्पत्ति के समय से ले कर अभी तक सात मन्वन्तर (काल) बीत चुके हैं जिनका विस्तृत वर्णन इस ग्रंथ में किया गया है। परशुरामजी की कथा भी इस पुराण में दी गयी है। इस ग्रंथ को विश्व का प्रथम खगोल शास्त्र कह सकते है। भारत के ऋषि इस पुराण के ज्ञान को इण्डोनेशिया भी ले कर गये थे जिसके प्रमाण इण्डोनेशिया की भाषा में मिलते है।
हिन्दू पौराणिक इतिहास की तरह अन्य देशों में भी महामानवों, दैत्यों, देवों, राजाओं तथा साधारण नागरिकों की कथाएं प्रचिलित हैं। कईयों के नाम उच्चारण तथा भाषाओं की विभिन्नता के कारण बिगड़ भी चुके हैं जैसे कि हरिकुल ईश से हरकुलस, कश्यप सागर से कैस्पियन सी, तथा शम्भूसिहं से शिन बू सिन आदि बन गए।तक्षक के नाम से तक्षशिला और तक्षकखण्ड से ताशकन्द बन गए। ये विवरण अवश्य ही किसी ना किसी ऐतिहासिक घटना की ओर संकेत करते हैं।
प्राचीन काल में इतिहास,आख्यान,संहिता तथा पुराण को एक ही अर्थ में प्रयोग किया जाता था।इतिहास लिखने का कोई प्रचलन नहीं था और राजाओ ने कल्पना शक्तियों से भी अपनी वंशावलियों को सूर्य और चन्द्र वंशों से जोड़ा है।इस कारण पौराणिक कथाएं इतिहास, साहित्य तथा दंत कथाओं का मिश्रण हैं।
श्री रामायण जी, श्री महाभारत जी तथा पुराण हमारे प्राचीन इतिहास के बहुमूल्य स्रोत हैं जिनको केवल साहित्य समझ कर अछूता छोड़ दिया गया है। इतिहास की विस्मृत श्रृंखलाओं को पुनः जोड़ने के लिये हमें पुराणों तथा महाकाव्यों पर शोध करना होगा।

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