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भोजन परोसने के आदर्श नियम...

भोजन परोसने के आदर्श नियम…


हिन्दू धर्म, ज्योतिष, वास्तु और आयुर्वेद में भोजन के कई नियम बताए गए हैं। उन नियमों को हम ग्रहण नहीं करते हैं तो परेशानी में पड़ते हैं। भोजन से ही हमारा शरीर और मन बनता है अत: भोजन के परोसने के नियम भी जान लेना चाहिए। भोजन की थाली परोसने के विशेष नियम होते हैं। यदि नियम से यह कार्य करेंगे तो ही इसका लाभ मिलेगा।
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पात्राधो मंडल कृत्वा पात्रमध्ये अन्नं वामे भक्ष्यभोज्यं दक्षिणे घृतपायसं पुरतः शाकादीन्‌ (परिवेषयेत्‌)।- ऋग्वेदीय ब्रह्मकर्मसमुच्चय, अन्नसमर्पणविधि
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भूमि पर जल से एक मंडल बनाकर उस पर थाली रखी जाती है या पाट पर थाली रखें।
थाली के मध्य भाग में चावल, पुलाव, हलुआ आदि परोसे जाते हैं।
थाली में बाई ओर चबाकर ग्रहण करने वाले पदार्थ रखें।
थाली में दाईं ओर घी युक्त खीर परोसें।
थाली में ऊपर की ओर बीच में नमक परोंसे। यदि लगता है तो।
नमक के बाईं ओर नींबू, अचार, नारियल चटनी, अन्य चटनी परोसें।
बाईं ओर छाछ, खीर, दाल, सब्जी, सलाद आदि परोसें।
थाली में कभी भी तीन रोटी, पराठे या पूड़ी नहीं परोसी जाती है।
थाली के बायीं ओर पर ही पानी का गिलास रखा जाता है।
भोजन की थाली पीतल या चांदी की होना चाहिए। यह नहीं है तो केल या खांकरे के पत्ते पर भोजन करें।
पानी का गिलास तांबे का होना चाहिए।
भोजन की थाली को पाट पर रखकर भोजन किसी कुश के आसन पर सुखासन में (आल्की-पाल्की मारकर) बैठकर ही करना चाहिए।
भोजन के पश्चात थाली या पत्तल में हाथ धोना भोजन का अपमान माना गया है।
भोजन करने के पूर्व तीन कोल गाय, कुत्ते और कौवे या ब्रह्मा, विष्णु और महेष के नाम के निकालकर थाली में अलग रख देना चाहिए।

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