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तीर्थराज प्रयागमहिमा

तीर्थराज प्रयागमहिमा

काशी खण्ड के अनुसार… 

यज्वनां पुनरावृत्तिर्न प्रयागाद्रर्वषर्मणाम्।
यत्र स्थितः स्वयम् साक्षाच्छुलटन्को महेश्वरः।।
तत्राःअक्षय वटोःप्यस्ति सप्तपातालमुलवान् ।
प्रलयेःपि यमारुह्मा मृकण्डतनयोऽवसत ।।
हिरण्यगर्भो विज्ञेयः स साक्षाद्वटरूपधृक्।
~ काशीखण्ड

प्रयाग के जल मे स्नानरूप यज्ञ करनेवालो को पुनर्जन्म नही होता।
प्रयाग के अधिष्ठाता भगवान शुलटंकेश्वर हैं, वह प्रयाग में स्नान करने वाले प्राणियों को मोक्षमार्ग का उपदेश स्वयं देते हैं, वही पर अक्षयवट भी है, जिसकी जड़े सप्तपाताल पर्यन्त गईं हैं और प्रलयकाल मे जिसके सहारे से मार्कण्डेय ऋषि निवास करते है, उसे वटरूपधारी साक्षात ब्रह्म ही जानना चाहिये।
माघमास के सूर्योदय के समय प्रयाग संगम पर पृथ्वी के समस्त तीर्थ स्नान को आते हैं।

यत्रलक्ष्मीपतिः साक्षाद्वैकुण्ठादेत्य मानवान।
श्री माधव स्वरुपपेण नयेद्विष्णो परं पदं ।।
~ काशीखण्ड्

प्रयाग मे साक्षात लक्ष्मीपति वैकुंठधाम से आकर मनुष्यों को श्री माधव स्वरुप से विष्णु के परम पद ( सारुप्य मोक्ष ) को पंहुचाते हैं।
अश्वमेधादिक यज्ञ और प्रयाग के धूलि को ब्रह्मा जी ने पूर्व में तौला था तोह प्रयाग के धूलि(धूल)का पुण्य अश्वमेध से ज्यादा निकला।
बहुत जन्म के संचित पाप प्रयाग का नाम सुनते ही भाग जातें है।

सरस्वती रजोरूपा तमोरूपा कलिन्दजा।
सत्वरूपा च गङ्गात्र नयन्ति ब्रह्मनिर्गुणं ।।
इयं वेणी हि निःश्रेणी ब्रह्मणो वतर्म् यास्यतः ।
जन्तोर्विशुद्ध देहस्य श्रद्धाःश्रद्धाप्लुतस्य।।
~ काशीखण्ड्

रजोगुणरूपा सरस्वती, तमो गुणाधिका यमुना और सत्वगुणमयी गंगा -ये तीनों जहाँ निर्गुण ब्रह्म को प्राप्त कराती हैं, वही त्रिवेणी चाहे श्रद्धापूर्वक अथवा अश्रद्धा से ही क्यों न एक बार भी गोता मार लेने से प्राणी मात्र को शुद्ध शरीर कर ब्रह्म मार्ग की प्राप्ति कराने वाली सीढ़ी हो जाती हैं।

शिव जी के कृपा के कारण तीर्थराज प्रयाग का दूसरा स्थान काशी में भी माना जाता हैं जो की प्रयागघाट के नाम से जाना जाता है। संगम स्नान करने का पूर्ण फल यहां स्नान करने से मिलता हैं और घाट के पास ही काशी खंडोक्त श्री शूलटंकेश्वर महादेव का मंदिर भी हैं।

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